Handwoven fabric is free of any animal-based chemical whereas manufacturing of power loom fabric involves the use of animal-driven chemicals such as mutton tallow.


मटन टेलो क्या होता है ?


देश भर के कत्ल खानों में कत्ल किये गये पशुओं के मांस के साथ चिपकी हुई चर्बी ही मटन टेलो है। मांस के साथ चिपके हुए मटन टेलो में रक्त, पस और दूसरी अशुद्धि मिल गई होती है। इस कारण मटन टेलो को केमिकल प्रोसेस द्वारा दुर्गन्ध और लाल रंग रहित किया जाता है एवं यह बचा हुआ सफ़ेद घी जैसा पदार्थ ही मटन टेलो कहलाता है।

मटन टेलो का उपयोग:


लगभग सभी कॉटन मिलों में कपड़ा बनने से पहले धागे की साइजिंग प्रोसेस करने के लिए मटन टेलो का उपयोग किया जाता है। कपड़ा बनाने की प्रोसेस में धागा बनने के बाद साइजिंग करते है, तभी धागा टूट न जाए इसलिए धागे के ऊपर मटन टेलो का लेयर चढ़ाया जाता है, जिससे धागा मजबूत और मुलायम बने ।

कपड़ा तैयार हो जाने के बाद उसकी धुलाई के लिए Fabric Softener का उपयोग किया जाता है और ज्यादातर Fabric Softener में मटन टेलो का उपयोग होता है।

मटन टेलो बेचने वाले व्यापारियों का कहना है कि कपड़ा बनाने में इसका उपयोग होता है। इसके अलावा मटन टेलो का उपयोग साबुन बनाने में, बायो डीज़ल में, मोमबत्ती बनाने में, सौन्दर्य प्रसाधन बनाने में तथा कई खाद्य पदार्थ बनाने में जैसे चिप्स, डोमिनोज पिज़्ज़ा, बेकरी आइटम, मिठाई, तेल के खाद्य पदार्थ इत्यादि जिनकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते सब में मटन टेलो का उपयोग होता है।

कत्ल किये गए पशुओं के रक्त और हड्डी का व्यापार होता है और अपने रोज के खाद्य पदार्थों में उसका उपयोग होता है जो अब अज्ञात नही है। मटन टेलो, रक्त और हड्डी की बाज़ार में अच्छी कीमत मिलने के कारण मांस बेचना सहज और सस्ता हो जाता है।

आइए अब हम जाग जाएं और रक्त हड्डी तथा मटन टेलो से बनने वाले पदार्थों का बहिष्कार करें।

फल स्वरूप उनकी बाजार मांग घट जाएगी, जिससे मांस को ही महंगे दामों पर बेचना पड़ेगा और लोग उससे आजीविका करना छोड़ देंगे, जिससे पशुओं का संहार होना रुक जाएगा।

नाशिक, बेलगाँव, मालेगांव और मुंबई के मटन टेलो के व्यापारी बताते है की वो लोग टनबन्ध माल मालेगांव और इचलकरंजी की सभी साइजिंग यूनिटों में बेचते है तथा अहमदाबाद प्रोसेसिंग यूनिट में भी बेचते है।

मटन टेलो की एक कंपनी (मालेगांव) के मालिक से पता चला है की वह अकेला व्यापारी ही एक माह में 20000 किलो मटन टेलो सिर्फ मालेगांव के एक साइजिंग यूनिट में बेचता है। उनकी कंपनी टैक्स के साथ ही माल बेचती है इसलिए व्यापार कम करती है लेकिन जो लोग टैक्स के बिना माल बेचते है उनका व्यापार ज्यादा है। जैन व्यापारी भी अपनी फैक्ट्री में मटन टेलो का उपयोग करते है। उनके धर्म में बाधा न आये इसलिए वह लोग दूसरों से यह काम करवाते है ।

प्रतिदिन तीन लाख पावरलूमों में 2 करोड़ मीटर कपड़ा बनाने के लिए मटन टेलो का प्रयोग होता है ।

अहमदाबाद स्थित पालडी विस्तार के एक जैन श्रावक खुदके साइजिंग यूनिट में मटन टेलो का उपयोग करते हैं। उनका कहना है की मटन टेलो कम कीमत में ज्यादा अच्छा परिणाम देता है। इस कारण हमे मिल के कपड़े पहनने से दोष लगता है ।

भगवान की अंगोछी, मंदिर के धोती दुपट्टे, माताजी एवं दीदीओं की साड़ी आदि वस्त्र इचलकरंजी, मालेगांव और अहमदाबाद के पावरलूम से आते है। जिसके ऊपर व्यापारी एक नामांकित मिल का ठप्पा तथा स्टीकर लगाकर बेचते है ।

अहमदाबाद में टेक्सटाइल रिसर्च में प्रख्यात एक संस्था लिखित में हमें बताती है कि कपड़ों की मिलो में धागों की मजुबूती और कोमलता के लिए मटन टेलो का ही उपयोग होता है। क्योंकि मटन टेलो सस्ता है और अन्य विकल्पों की अपेक्षा अच्छा परिणाम देता है।

इसके उपरांत मटन टेलो का उपयोग Cationic fabric Softener (जिससे कपड़ा मुलायम बनता है) के रूप में होता है तथा टेस्टिंग करने पर मटन टेलो के अंश भी कपड़ों में पाए जाते है।

हथकरघा क्यों? Why Handloom

आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के भाव मुनि श्री निरीहसागर जी महाराज की लेखनी से

अहिंसक धर्मानुसार दृष्टि

डिंडोरी २०१८ पंचकल्याणक की बात है प्रात: आचार्य श्रीजी के साथ ससंघ आचार्य वन्दना के पश्चात् ४-५ जेल के जेलर, जेल मंत्री, अन्य मंत्री एवं हथकरघा के संचालन कर्ता की लगभग डेढ़ घंटे बैठक चली कि सागर केन्द्रीय जेल में जिस तरह जैन संस्था द्वारा पू० आ० श्री जी के आशीर्वाद से हथकरघा के माध्यम से सैकड़ों कैदियों को रोजगार मिला उसी प्रकार मध्यप्रदेश की सभी मुख्य जेल एवं भारत की मुख्य जेल के कैदियों को रोजगार मिल जाय। उनके जाने के तुरंत बाद विद्वान् वर्ग के बड़े-बड़े ४-५ पंडित जी रतन लाल बैनाड़ा, शीतल प्रसाद जी आदि ने आचार्य श्री जी के दर्शन हेतु भीतर प्रवेश किया। पू० आचार्य श्री जी के सामने हथकरघा के कुछ वस्त्र फैले थे जिन्हें हथकरघा संचालक समेट रहे थे। और आचार्य श्री ने तुरंत ही पंडित‌ जी को देखते हुए कहा आईये आइये पंडित जी अपने यहाँ २००० वर्ष पूर्व में आ० श्री उमास्वामी जी महाराज ने तत्त्वार्थ सूत्र जी के पंचम अध्याय के २१ वें सूत्र में क्या कहा "परस्परोपग्रहो जीवानाम्" न कि "परस्परोपग्रहो जैनानाम्" शायद विद्वानों के मन में यह चल रहा हो इतने बड़े आचार्य कपड़ों की दुकान जैसी लगाकर बैठे हैं। ये स्वयं वस्त्र पहनते नहीं किन्तु वस्त्रों के विषय में इतना समय क्यों दे रहे हैं? इसलिये आचार्य श्री जी ने कहा होगा परस्परोपग्रहो जीवानाम् अर्थात् जीव मात्र के लिये दया होनी चाहिए न कि मात्र परस्परोपग्रहो जैनानाम् अर्थात् जैनों के प्रति दया होनी चाहिये। मशीन (पावरलूम) में बनने वाले कपड़े में कैमिकल (मटन टेलो) पदार्थ को लगाया जाता है, मजबूत व सुन्दर बनाने के लिये मशीन में धागा बार-बार न टूटे, जो कि (मटन टेलो) पदार्थ जीवों की हिंसा से बनता है इसलिये पावर लूम के वस्त्र हिंसक हैं अहिंसक नहीं।


The art in machine-made clothes appeals only to the eye. The art in handloom clothes appeals first to the heart and then to the eye.
In our handcrafted outfits, there are no mistakes, just beautiful creations.