At KhadiVadi, farmers and artisans are trained to use the handloom method to produce cloth independently and earn a living for themselves.
हथकरघा क्यों? Why handloom
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के भाव मुनि श्री निरीहसागर जी महाराज की लेखनी से:
- भारतीय संस्कृति एवं धन की रक्षा
गुलाम भारत अंग्रेजों के शासन में आजादी पाने के लिये कई यत्न किये जिसमें विदेशी वस्त्रों की होली जलाना आदि भी थे। वर्तमान में विदेशी शिक्षण के प्रभाव से भारतीय संस्कृति एवं परिधान दोनों अत्यधिक प्रभावित हुये हैं यदि सभी भारतीय संकल्प करलें कि केवल भारतीय परिधान ही उपयोग करेंगे तब भारतीय संस्कृति की रक्षा होगी एवं भारत का धन भारत में ही रहेगा विदेश नहीं पहुंचेगा।
एक भारतीय श्राविका लंदन अपने बेटे-बहू के यहाँ गई, वहाँ विदेशी वेश - भूषा परिधान से प्रभावित हो धारण कर लिये एवं मोबाइल (चलित दूरभाष) का प्रयोग किया, सेल्फी (स्वयं का छायाचित्र) ले लिया अपने चलित दूरभाष में स्टेटस (वर्तमान स्थिति) प्रस्तुत कर दी। भारत में उस श्राविका के परिचित लोगों ने वह स्टेटस देख लिया।
एक मुनिराज उनके नगर में पाठशाला के बच्चों को उपदेश दे रहे थे कि आप लोगों को विदेशी वस्त्र जींस टी-शर्ट आदि नहीं पहनना चाहिये तब एक बच्ची ने अलग से उन मुनिराज को कहा हमारे यहाँ की तो दादियाँ भी जींस-टी शर्ट पहनती हैं।
दूसरे दिन मुनिराज ने कक्षा में पाठशाला के बच्चों के साथ उन वृद्ध महिलाओं के समक्ष यह कह दिया कि हमने सुना है यहाँ की तो दादियाँ भी विदेशी जींस टी-शर्ट पहनती हैं। उस श्राविका ने सुना जो लन्दन अपने बेटे बहू के यहाँ रह कर आई थी व वहाँ पर उन विदेशी वस्त्रों को धारण किया था। दूसरे दिन बच्चों को रोककर कहा तुम लोग महाराज जी को ये बातें क्यों बताते हो जैसा देश वैसा भेष महाराज जी तो कुछ दिनों के बाद चले जायेंगे तुम भी इन वस्त्रों को पहनो हम भी पहनें महाराज को बताना नहीं किन्तु बच्चे पूर्व के संस्कारी थे उन्होंने दोपहर में कक्ष में आकर सारी बाते बता दीं, मुनिराज ने पुनः शाम को कक्षा में ये बातें दोहराकर कहा कि ये कहावत हर जगह नहीं घट सकती "जैसा देश वैसा भेष"। विदेशी व्यक्ति जब भारत आता है तो भारतीय परिधान नहीं अपितु वह अपने देश के विदेशी वस्त्र ही पहनता है उसी प्रकार आप लंदन आदि दूसरे देश में गये तब उनके देश के वस्त्र क्यों पहनते अपने स्वदेश भारतीय परिधान को पहनकर अपनी भारतीयता की प्रस्तुति दें। उनके वस्त्रों में आप वहीं के विदेशी कहलाएगें।
- रौद्रध्यान का निस्तारक है हथकरघा
रौद्रध्यान क्रमशः हिंसानंदी, मृषानंदी, चौर्यानंदी, परिग्रहानंदी रौद्रध्यान । हिंसक अर्थात मटन टैलो वाले नये वस्त्र धारण करता है तब भी आनंद आता है चाहे अहिंसक, हथकरघा के वस्त्रप्रथम बार धारण करो तो आनंद आता है आनंद मनाने में दोष कब लगा ? जब हिंसक (पावरलूम) के वस्त्र पहने किन्तु जब अहिंसक हथकरघा के वस्त्र पहनकर आनंद मनाया तब हिंसानंदी रौद्रध्यान से बच गये , संसारी गृहस्थ अथवा चतुर्थ, पंचम गुणस्थान वालों की मजबूरी है कि निर्वस्त्र नहीं रह सकते अर्थात् वस्त्र धारण करना पड़ता है तब हथकरघा के वस्त्रों से उन्हें हिंसानंदी रौद्रध्यान नहीं होता है
मृषानंदी रौद्रध्यान, चौर्यानंदी रौद्रध्यान अर्थात् झूठ बोलने में आनंद मनाना, चोरी करने में आनंद मनाना किन्तु जो हथकरघा के वस्त्रों को धारण करेगा वह इस प्रकार परिणाम ही नहीं करता (चोरी व झूठ बोलने के) और यदि झूठआदि बोलना भी पड़े तो भी तब किसी भी जीव को दुखी नहीं करता, मरण आदि से बचाने के लिये करना पड़ता है।
परिग्रहनंदी रौद्रध्यान (पावरलूम) के सस्ते वस्त्रों को वह क्रय करता जाता है तब उसे परिग्रह बढ़ने पर आनंद मनाने में दोष लगता है किन्तु अहिंसक हथकरघा के वस्त्र श्रम से बनाये जाते हैं बनाने वालों को पारिश्रमिक अधिक देना होता है तब वे वस्त्र महंगे होते हैं मध्यम वर्गीय जन उन हथकरघा के वस्त्रों को ज्यादा नहीं क्रय कर पाते आवश्यकतानुसार सीमित ही क्रय करते हैं फैशन या दिखावे के लिये नहीं क्रय करते हैं वे अपने आप ही परिग्रह ज्यादा न बढ़ने से परिग्रह में आनंद मनाने वाले परिग्रहानंदी रौद्रध्यान से बच जाते हैं। इस प्रकार से जीवन संचालन में, वस्त्र धारण करने में अवश्य होने वाले रौद्रध्यान का निस्तारक है हथकरघा।
आज्ञाविचय, अपायविचय, विपाकविचय, संस्थानविचय धर्मध्यान।
आज्ञाविचय धर्मध्यान का पालन स्वयमेव हो जाता है यदि आप आ० श्री विद्यासागर जी महाराज के वचनों पर श्रद्धान करके शुद्ध अहिंसक बिना मटन टेलो वाले हथकरघा के वस्त्रों को धारण करते हैं। यदि नहीं कर पा रहे हैं तो आपका आज्ञाविचय धर्मध्यान का पालन नहीं हो रहा है क्योंकि आपके मन में उन हथकरघा के वस्त्रों को धारण करने में कई तरह के विचार चल रहे हैं। आ० श्रीजी कहते थे कैकई का नाम कैकई इसलिये था क्योंकि वह कई-कई तरह के विचार मन में लाती थी।
- धर्मध्यान का विस्तारक है हथकरघा, अपायविचय धर्मध्यान
संसार में जो दुखी जीव हैं, उनके दुख दूर करने का विचार करना अपायविचय धर्मध्यान कहलाता है
आचार्य श्री जी से कहा गया आप "एक पंथ दो काज" वाले कार्य करते हैं तब उन्होंने कहा ऐसा नहीं सुनो (धीरे से कहा) "एक पंथ कई काज" अर्थात्- वस्त्र धारण करना सभी गृहस्थ मनुष्य की आवश्यता है वह हिंसक वस्त्रों को न पहने अपितु अहिंसक वस्त्र (हथकरघा) पहने तो एक पंथ कई काज होंगे।
जैसे-
- मटन टेलो पदार्थ बनाने में जो हिंसा होती वह नहीं होगी,
- चर्म रोग आदि कोई बीमारी नहीं होगी
- शरीर स्वस्थ पूर्वायु वाला होगा,
- मानसिक तनाव नहीं होगा, "सुख पावे संतोषी प्राणी" वाली सूक्ति चरितार्थ होगी,
- कैदीयों को केन्द्रीय कारागार में जाकर रोजगार दिया गया उनके परिजनों को मासिक पारिश्रमिक के माध्यम से घर-गृहस्थी का उनके अभाव में सुचारु रूप से संचालन होगा एवं कारागार से छूटने के बाद वे बाहर जाकर फिर वही चोरी, मारपीट आदि कोई भी अपराध नहीं करेंगे अर्थात् अपराध में कमी आयेगी
- बेरोजगारी दूर होगी
- भारतीय- संस्कृति सुरक्षित रहेगी
- स्वदेशी, अहिंसक, हथकरघा के वस्त्रों को अपनाने से भारत की अर्थव्यवस्था सुधरेगी
- भारत का धन भारत में ही रहेगा।
इन वस्त्रों को धारण करने वाले के परिणाम इतने निर्मल व सौम्य होंगे कि वे परस्परोपग्रहो जीवानाम् सूत्र का अच्छी तरह से पालन करेंगे दूसरों के विषय में बुरा नहीं सोचेंगे। तब यह हायकू सार्थक होगा -
हमसे कोई,दुःखी नहीं हो बस,यही सेवा है।